सोमवार, 11 फ़रवरी 2008

सॉरी टीचर, मैने घर का धुंधला पता बताया था


एक स्कूली वाक्या, (अगस्त 1997 ) जो मैं कभी नहीं भूल सकता उस वक़्त मैं दसवी वर्ग में था. मुझे पटना जिला स्तरीय विज्ञान संगोष्ठी के आयोजन की जानकारी मिली और मैं उसमे क्लास के मित्रों के साथ जा बैठा, हांलाकि मैंने महज खानापूर्ति के लिये अपना ड्राइंग चार्ट (जो जैसे- तैसे खिंचा हुआ था) वहाँ प्रर्दशित किया और गाहे बगाहे चन्द पंक्तियाँ भी बोल गया घोर आश्चर्य! संगोष्ठी में मुझे दूसरा स्थान प्राप्त हुआ और इसके बाद मुझे प्रमंडल स्तरीय विज्ञान संगोष्ठी में झंडा बुलंद करना था. मेरे लिये यह बिलकुल नया अनुभव था इसके लिये फिजिक्स के टीचर डॉ रामकृष्ण प्रसाद को मुझे गाइड करने की जिम्मेदारी सौपी गयी. सर ने मुझसे कहा की 15 अगस्त को तुम्हे स्कूल में स्पीच देना है. इतना जानने के बाद मैं कहाँ स्कूल जाने वाला था. मै दूसरी तरफ प्रमंडल स्तरीय संगोष्ठी के भूत से भी डरा सहमा था, मन में सोचता था की इस दफा तो कई जिलों के मेधावी व तेज़-तर्रार लड़कों और लड़कीयों से भिड़ना होगा. लेकिन 15 अगस्त को स्कूल नहीं जाने के कारन रामकृष्ण सर मेरे घर आ पहुचे। मुझे दिन में चाँद नज़र आने लगा . मैने ये क्या आफत (संगोष्ठी) अपने गले में स्वंय बांधा है, शायद मैने ही उन्हे अपने घर का धुंधला सा पता बताया था और उन्होने मेरा घर पता कर लिया. लेकिन सर के सम्मुख मैं अपनी नासाज तबीयत का बहाना करने के सिवाय कुछ न कह सका. सर का मेरे घर आने का यह सिला रहा की मैं प्रमंडल स्तरीय विज्ञान संगोष्ठी में सिरकत करने पहुँच गया. घबराहट तोः बहुत हुई, लेकिन वहां अंत तक सर मेरा हौसलाअफजाई करते रहे. अंततः हश्र यह हुआ की मुझे पुनः प्रमंडल स्तरीय विज्ञान संगोष्ठी में द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ. मैं असहज अपने शिक्षक को देखने लगा, मैने देखा की सर के चेहरे पर असीम ख़ुशी है और इस ख़ुशी के पीछे मेरे प्रति पुनः एक नया आशावान भाव अंकुरित हो चला है.