हे देवों के श्रीधर !
स्वप्नों की दुनिया से जागो
श्रींगार करो
प्रेम के इस बाग में
एक घर बनाओ बसाओ |
लेकिन
अपने गृह-प्रवेश का निमंत्रण पत्र
इस शाब्दिक सुदाम को
औपचारिकता तले ही सही
अनिवार्य प्रेषित करना |
चरणों की दुहाई में
मंदिर के देवों ने कई दफा
मेरे पैरों में कील चुभोये
मैं चुप खामोश देखता सुनता रहा
मानो निर्जीव हूँ |
हे देवों के श्रीधर !
यह तुम्हारी ही लीला थी
जो उस रात दर्द में कराहता रहा
भूखे पेट मन में दहाङता रहा
और कालांतर का साथी सुदामा बना |